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#OpenPoetry जब मैं छोटी थी दुनियाँ शायद बहुत बड़ी

#OpenPoetry जब मैं छोटी थी 
दुनियाँ शायद बहुत बड़ी हुआ करती थी,
मुझे याद है, मेरे घर से स्कूल तक का वह रस्ता,
क्या–क्या नहीं था वहाँ,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बरफ के गोले,
सब कुछ!

अब वहाँ मोबाइल शॉप, विडियो पार्लर हैं
फिर भी सब सूना है,
शायद दुनियाँ अब सिमट रही हैं।

जब मैं छोटी थी ,
शायद शामें बहुत लंबी हुआ करती थीं,
मैं हाथ में पतंग की डोर लिये घंटों उड़ा करती थी,
वो लंबी सइकिल रेस,
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक कर चूर हो जाना।

अब शाम नहीं होती,
दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है,
शायद वक्त सिमट रहा है। #OpenPoetry #ourlove#nadaaniya
#OpenPoetry जब मैं छोटी थी 
दुनियाँ शायद बहुत बड़ी हुआ करती थी,
मुझे याद है, मेरे घर से स्कूल तक का वह रस्ता,
क्या–क्या नहीं था वहाँ,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बरफ के गोले,
सब कुछ!

अब वहाँ मोबाइल शॉप, विडियो पार्लर हैं
फिर भी सब सूना है,
शायद दुनियाँ अब सिमट रही हैं।

जब मैं छोटी थी ,
शायद शामें बहुत लंबी हुआ करती थीं,
मैं हाथ में पतंग की डोर लिये घंटों उड़ा करती थी,
वो लंबी सइकिल रेस,
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक कर चूर हो जाना।

अब शाम नहीं होती,
दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है,
शायद वक्त सिमट रहा है। #OpenPoetry #ourlove#nadaaniya
purvayadav5986

Purva Yadav

New Creator