उठाकर सर कभी चलने की हिम्मत ही नहीं होती सियासी आदमी में रीढ़ की हड्डी नहीं होती यहाँ मेहनत की रोटी भी बड़ी मुश्किल से पचती है वो सारा मुल्क खा जाएँ तो बदहज़मी नहीं होती भरोसा ख़त्म हो जाने पे कुछ बाक़ी नहीं रहता ये वो काग़ज़ है जिसकी कार्बन कापी नहीं होती शायर शुभ.. #Cab