बाक़ी रातों का पता नहीं आज पल को भी पलकें ढली नहीं कितने दिन डूबे आँखों में ये साँझ कि अब तक ढली नहीं जाने कैसा ये सूरज है ठिठका बैठा है आँखों में क़ैद बड़ी मुश्किल ज़ानिब! इन जलती हुई सलाखों में... तुम ख़्वाबों में भी मत आना इन सुलगती हुई सहराओं में #coinciding