जरूरत इन्हें है रोज़गार की प्यार की है और बाज़ार की काम की ओ आराम की तालीम भी हिंदुस्तान की कायदों में बदलाव की ठंड में गर्म अलाव की बुर्कों में छुपी सियासत है बनावटी ये बग़ावत है बहन बेटी या माशूका ही न तुझसे कोई अदावत है पहचान कि कोई है यहीं झूठी कोई सियासत है . धीर सियासत