याद आया कि आज फिर तू न मिलेगा.. तेरी चेहरे का वो चांद आज भी न खिलेगा... न फैलेगी खुशबू तेरी जुल्फों में लगे गजरे की.. न खनकेंगी तेरी चूड़ियां न आंगन में वह दीया जलेगा.. घर पहुंचते पहुंचते ये याद आया कि आज भी मेरा घर मुझे बेनूर और सूना मिलेगा...।। घर हमारा ही होता है लेकिन यहाँ तक पहुँचना भी हमारे लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि घर पर हमारा शरीर तो पहुँच जाता है, मन बाहर ही भटकता रहता है। #घरपहुँचते #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi