रकीब की बाहों को उसकी अगली जमात समझता हूँ उसकी बेवफ़ाई को भी मैं अपनी जकात समझता हूँ मिलने पाए जो भी दर्द-ए-गम इस रुसवाई में, मैं उसके दिए हर एक गम का खुद को हक़दार समझता हूँ !