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न मुझे दिन के उजाले से न मुझे रात के अंधेरे से न

न मुझे दिन के उजाले से 
न मुझे रात के अंधेरे से 
न मुझे भूत प्रेतों से 
न ही जानवरों से
डर लगता है ,
तो बस समाज 
के हैवानों 
से.............

न मुझे ऊंचाई से 
न ही गहराई से
न नदी से न पहाड़ से 
न खलिहान से
न समंदर से
न ही तालाब से
डर लगता है,
समाज के
नकाबपोशों से...... आजकल कितना डर लगता है बेटी को घर से अकेले भेजते हुए
पता नहीं होता है की वो जा रही तो क्या सेफ वो घर लौटेगी की नहीं
हमारे समाज में कुछ ऐसे हैवान प्रगट हो गए हैं .............
न मुझे दिन के उजाले से 
न मुझे रात के अंधेरे से 
न मुझे भूत प्रेतों से 
न ही जानवरों से
डर लगता है ,
तो बस समाज 
के हैवानों 
से.............

न मुझे ऊंचाई से 
न ही गहराई से
न नदी से न पहाड़ से 
न खलिहान से
न समंदर से
न ही तालाब से
डर लगता है,
समाज के
नकाबपोशों से...... आजकल कितना डर लगता है बेटी को घर से अकेले भेजते हुए
पता नहीं होता है की वो जा रही तो क्या सेफ वो घर लौटेगी की नहीं
हमारे समाज में कुछ ऐसे हैवान प्रगट हो गए हैं .............

आजकल कितना डर लगता है बेटी को घर से अकेले भेजते हुए पता नहीं होता है की वो जा रही तो क्या सेफ वो घर लौटेगी की नहीं हमारे समाज में कुछ ऐसे हैवान प्रगट हो गए हैं .............