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घरों में कैद होकर,उड़ना भूल चुके हैं हम, रिश्ते सं

घरों में कैद होकर,उड़ना भूल चुके हैं हम,
रिश्ते संभाल ना पाए,जुड़ना भूल चुके हैं हम।
जो जुड़े थे कभी,अब दूर हो गए हैं,
रिश्तों की किताब को शायद,
पढ़ना भूल चुके हैं हम।
काश,वक्त दिया होता रिश्तों को,
काश, कभी खुद को भी परखा होता,
अहमियत रिश्तों की शायद,
समझना भूल चुके हैं हम।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
हाथ बढ़ाकर पकड़ो उनको,
जिन्हें पकड़ना भूल चुके हैं हम।

©Nritya Gopal रिश्तों को थोड़ा वक्त दीजिए,बिगड़े रिश्ते भी संवर जाएंगे।

#Smile#रिश्ते#poetry#relationship
घरों में कैद होकर,उड़ना भूल चुके हैं हम,
रिश्ते संभाल ना पाए,जुड़ना भूल चुके हैं हम।
जो जुड़े थे कभी,अब दूर हो गए हैं,
रिश्तों की किताब को शायद,
पढ़ना भूल चुके हैं हम।
काश,वक्त दिया होता रिश्तों को,
काश, कभी खुद को भी परखा होता,
अहमियत रिश्तों की शायद,
समझना भूल चुके हैं हम।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
हाथ बढ़ाकर पकड़ो उनको,
जिन्हें पकड़ना भूल चुके हैं हम।

©Nritya Gopal रिश्तों को थोड़ा वक्त दीजिए,बिगड़े रिश्ते भी संवर जाएंगे।

#Smile#रिश्ते#poetry#relationship
nrityagopal3065

Nritya Gopal

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