जिन राहों के खातिर तुम हो रुके यहां पर उन राहों पर आगे क्या तुम जा पाओगे हम तुमको चाहे खुशियाँ या नफरत दें तुम चाहोगे फिर भी कुछ ना दे पाओगे... !! हम सपन सी इक कला के स्वप्न के भी पार ठहरे मेरे स्वर या कल्पना पर दूर सब अधिकार ठहरे हर विसंगति बांह में लेकर नया अनुराग आई.. , और बोली तुम प्रणय की राह पर बेकार ठहरे... !!