शराफ़त क्या इख्तियार कर ली गिरेबान पकड़ने लगें हैं लोग, ये कैसा ज़ुल्म हैं मुझ पर अब तो ईमान पकड़ने लगें हैं लोग, कहाँ था बज़्म में बस इतना कि सिद्क़ दिल से तौबा करता हूँ, गुनहगार खुद को क्या माना फरमान पकड़ने लगें हैं लोग, जबतक बेईमान थे तब तक हमें पूछता नहीं था कोई जहां में, ज़रा सी सुर्खियों में क्या आए पहचान पकड़ने लगें हैं लोग, जब से सच को सच, झूठ को झूठ कहने की हिम्मत की हैं, "वारिश" भरी बज़्म में मेरी ज़बान पकड़ने लगें हैं लोग, और मुझें जैसे अनपढ़ ने "किताब_ए अंसारी" क्या लिख दी, हर कोरे कागज़ से लेकर कमलदान पकड़ने लगें हैं लोग, #किताब_ए_अंसारी