भागीरथी के तप से खुश होकर मां गंगे धरती पर आई है जन मन रंजन के सब पाप मिटाने वैकुंठ लोक से आई है इतना निर्मल इतना पवित्र मां गंगे की धारा है स्नान ध्यान करते ही मन पवित्र हुआ हमारा है गंगा जमुना औ सरस्वती की मिलती जो धारा है वह क्षेत्र किसी तीर्थ से काम नहीं प्रयागराज हमारा है (2) मां गंगे का जल है ऐसा जिसमें कोई जात नहीं सब करते हैं इनकी पूजा इनका कोई धर्म नहीं गंगा का जल है अद्भुत इसमें कोई दोष नहीं औषधि गुणवत्ता से पूर्ण है सब पीते हैं जल यही सनातन धर्म को मिला है ऐसा मां गंगे का वरदान फूलों फलों सब खुश रहो सबको दिया यही वरदान सबको दिया यही वरदान ©Roshni keshari ganga Ma ki कविता