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ये ज़ख्म किसी नज़्म से कम नहीं कुछ और मिल जाय तो ग

ये ज़ख्म किसी नज़्म से कम नहीं
कुछ और मिल जाय तो गम नही
ये ज़ख्म किसी.....
कौन जाने मंजिल कितनी दूर है
हमारे अपने भी कुछ मजबूर हैं 
किसी भी बात से आखें नम नहीं
ये ज़ख्म किसी.....
प्रश्न भी तुम्हारा उत्तर भी तुम्हारा
फिर ज़ख्म औ दर्द दोनों हमारा
तुम्हारी गुलाम मेरी कलम नहीं
ये ज़ख्म किसी.....
हर क्रिया का प्रतिक्रिया होता है
काटता वही जो व्यक्ति बोता है
ये न सोच "सूर्य" में कोई दम नहीं 
ये ज़ख्म किसी.....

©R K Mishra " सूर्य "
  #ज़ख्म