Nojoto: Largest Storytelling Platform

जवानी में बुढापे के लिये कुछ लिख रहा हूँ, बुढापा द

जवानी में बुढापे के लिये कुछ लिख रहा हूँ,
बुढापा देख उनका, आज फिर कुछ कह रहा हूँ,

जो होते थे शहंशाह यूँ, कभी अपनी जवानी में, 
नैन उनके भिगे मुझको दिखे थे आज पानी में.

कदम जिनके बने पथ उन हजारों के लिये,
हुवे लाचार क्यूँ  अब लडखडाने के लिये,

जुँबा जो थी बुलंदी पर अडिग थे फैसलों पर,
न जाने क्यूँ  सिसकती हैं जरा से फासलों पर.

कभी होते खडे जो दूसरों के वास्ते ,
वही लाचार हैं अब देखने को रास्ते.

विधाता का ये कैसा खेल कैसा चक्र है,
बिना तेरे मुझे इस जिंदगी पे फक्र है. #बुढापा#
जवानी में बुढापे के लिये कुछ लिख रहा हूँ,
बुढापा देख उनका, आज फिर कुछ कह रहा हूँ,

जो होते थे शहंशाह यूँ, कभी अपनी जवानी में, 
नैन उनके भिगे मुझको दिखे थे आज पानी में.

कदम जिनके बने पथ उन हजारों के लिये,
हुवे लाचार क्यूँ  अब लडखडाने के लिये,

जुँबा जो थी बुलंदी पर अडिग थे फैसलों पर,
न जाने क्यूँ  सिसकती हैं जरा से फासलों पर.

कभी होते खडे जो दूसरों के वास्ते ,
वही लाचार हैं अब देखने को रास्ते.

विधाता का ये कैसा खेल कैसा चक्र है,
बिना तेरे मुझे इस जिंदगी पे फक्र है. #बुढापा#