चलो बाकी बातें कल करेंगे सो भी जाओ तुम्हें जल्दी भी तो उठना है।" कहकर दादी ने तृषा को लाइट ऑफ कर सो जाने को कहा।
"तंत्र साधना, शव साधना, श्मशान साधना, भैरवी और तारा जैसी सारी साधनाएं जानता हूँ मैं!!! समझा महा मूर्ख!!!! अब मेरी शक्तियों को कम समझने की गलती की तो तुझे खड़ा खड़ा भी भस्म कर सकता हूँ मैं। दुबारा मत पूछना।"
भयानक वेशभूषा और शक्ल वाला अघोरी घनी अंधेरी रात में अमर को पकड़ कर श्मशान घाट लेकर जा रहा है। आधी रात में सब सोए हैं, और जाग रहा है तो बस श्मशान। तेज हवाएं चल रही है, पेड़ों के पत्ते कानों में सांय सांय की आवाज़ कर रहे हैं। अजीब से जानवरों की आवाज़ें उन पत्तों की आवाजों के साथ मिलकर उस रात को और डरावना बना रही है। अमर उसके साथ साथ उसके पीछे पीछे चला जा रहा है। श्मशान घाट में जली कुछ चिताओं के अंगारे तक अब तक ठंडे नहीं हुए।
अघोरी अमर को एक ऐसी ही चिता के पास ले गया जो कुछ समय पहले जलकर भस्म हो चुकी थी। उसके अंगारे भी अपेक्षाकृत ठंडे हो चुके थे। उसने अमर को वहाँ ले जाकर कुछ मंत्र पढ़ते हुए चिता के बीचों बीच बैठने का इशारा किया।अमर को बीचो-बीच बिठा देने के बाद उसने
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