पिता! ये दौर है लाचार रिश्तों का ख़ूबियाँ रिश्तों की हो गईं हैं पत्थर किसी में भी दिखता नहीं जज़्बात जीने का सुरूर मगर पिता तुम भुलाकर हर तकलीफ हमारे जीने के लिए बनाते रहे रस्ते # पिता! तुझमें रिश्तों का जज़्बात जीने का सुरूर है