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पल्लव की डायरी गाँवो में माना धूल है मगर शहरो जैसी

पल्लव की डायरी
गाँवो में माना धूल है
मगर शहरो जैसी नही भूल है
भले ही भीड़ कम,पहचान भरपूर होती है
रिश्तों में चासनी सी मिठास नही
निभाने की प्यास होती है
होड़ नही गले काटने की
हर घर को मदद की दरकार होती है
कौन भूखा सो गया,कौन परेशान है
सजी संगमरमर जैसी सड़को पर
फिसलता शहरो में, इन्सानियत का ईमान है
उजालो में बसते काले मन के हैवान है
                                                      प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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