फ़लसफ़े ख़ुदाई जाना मानो हजार जाना किस्सा ओ अफ़साने उसके तमाम जाना जाना मगर न जाना तुझे या खुद को जाना माना ख़ुद ख़ुदा तो फिर किसे हमने जाना . इबारतें इफ़रात बोझ धीर लिए देखता है मसीहा मिले हर गली सज़दे में जमाना . वाह क्या ख़ूब अफ़साना मसीहा