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रोज यही सब क्यों होता है, छुप अंदर तू क्यों


रोज यही  सब  क्यों  होता है,
छुप अंदर  तू   क्यों  रोता  है।

तुझे से भी  बरबाद  बहुत हैं,
गहरी  नींद में’ क्यों  सोता है।

सोच   गरीबी   महंगाई   को,
अपना  आपा  क्यों खोता है।

मिलता  है  उसको  वैसा ही,
जो  जैसा  जग  में  बोता है।

मिल जायेगी मंजिल तुझको,
सब्र का फल  मीठा होता है। रोज़ यही सब क्यों होता है...
#क्योंहोताहै #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
#ग़ज़ल_मन #मौर्यवंशी_मनीष_मन

रोज यही  सब  क्यों  होता है,
छुप अंदर  तू   क्यों  रोता  है।

तुझे से भी  बरबाद  बहुत हैं,
गहरी  नींद में’ क्यों  सोता है।

सोच   गरीबी   महंगाई   को,
अपना  आपा  क्यों खोता है।

मिलता  है  उसको  वैसा ही,
जो  जैसा  जग  में  बोता है।

मिल जायेगी मंजिल तुझको,
सब्र का फल  मीठा होता है। रोज़ यही सब क्यों होता है...
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