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" प्रेम की पराकाष्ठा " मन-मरुस्थल का जल स्रोत थी

" प्रेम की पराकाष्ठा "

मन-मरुस्थल का जल स्रोत थी वो ।
प्यासे नैनों में आशा की ज्योत थी वो ।।

थी मधुबन की राधा के जैसी ,
रसिया के रास की रस धार थी वो ।।

अद्धभुत,अदम्य साहस से परिपूर्ण थी वो ।
प्रेम कलाओं में निपुण थी वो ।।

थी मोहन की बंसी के जैसी ,
छलिया के अधरों का गान थी वो ।।

अमिट चरित्र की थी वो अनुकर्णी ।
आदर्शो की मूरत महान थी वो ।।

थी नंद-लाला की कर्ण-बाली के जैसी ,
श्रृंगार का रति स्थायी भाव थी वो ।।

मर्ग तृष्णा में मानो आधार थी वो ।
जीवो का प्राणाधार थी वो ।।

थी गिरधर के कर-कमलों की लाली जैसी ,
द्वापर का गीता सार थी वो ।। #kamna #prem #mohbbat
" प्रेम की पराकाष्ठा "

मन-मरुस्थल का जल स्रोत थी वो ।
प्यासे नैनों में आशा की ज्योत थी वो ।।

थी मधुबन की राधा के जैसी ,
रसिया के रास की रस धार थी वो ।।

अद्धभुत,अदम्य साहस से परिपूर्ण थी वो ।
प्रेम कलाओं में निपुण थी वो ।।

थी मोहन की बंसी के जैसी ,
छलिया के अधरों का गान थी वो ।।

अमिट चरित्र की थी वो अनुकर्णी ।
आदर्शो की मूरत महान थी वो ।।

थी नंद-लाला की कर्ण-बाली के जैसी ,
श्रृंगार का रति स्थायी भाव थी वो ।।

मर्ग तृष्णा में मानो आधार थी वो ।
जीवो का प्राणाधार थी वो ।।

थी गिरधर के कर-कमलों की लाली जैसी ,
द्वापर का गीता सार थी वो ।। #kamna #prem #mohbbat