" प्रेम की पराकाष्ठा " मन-मरुस्थल का जल स्रोत थी वो । प्यासे नैनों में आशा की ज्योत थी वो ।। थी मधुबन की राधा के जैसी , रसिया के रास की रस धार थी वो ।। अद्धभुत,अदम्य साहस से परिपूर्ण थी वो । प्रेम कलाओं में निपुण थी वो ।। थी मोहन की बंसी के जैसी , छलिया के अधरों का गान थी वो ।। अमिट चरित्र की थी वो अनुकर्णी । आदर्शो की मूरत महान थी वो ।। थी नंद-लाला की कर्ण-बाली के जैसी , श्रृंगार का रति स्थायी भाव थी वो ।। मर्ग तृष्णा में मानो आधार थी वो । जीवो का प्राणाधार थी वो ।। थी गिरधर के कर-कमलों की लाली जैसी , द्वापर का गीता सार थी वो ।। #kamna #prem #mohbbat