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हृदय था मेरा जब बेचैन, मस्तिष्क डूबा चिंतन में घुट

हृदय था मेरा जब बेचैन, मस्तिष्क डूबा चिंतन में
घुट रहा दम मेरा, कुरीतियों के इस सामाजिक क्रंदन में
अहिंसा का था पुजारी, लड़ सकता नहीं हथियार से
फिर सोचा तनिक मैंने ,और उठाई कलम बड़े प्यार से
कलम तो मैंने पकड़ ली,फिर हृदय में आया ये ख्याल
क्या लिखूं और लिखूं कैसे, मस्तिष्क में थे ढेरों सवाल
हो क्या विषय मेरा,जिस पर करूं मैं नित लेखन
बस यही विचार से चल दिया मैं चौराह पर देखन
सोचा यूं तो पहेली बहुत है, पर लिखूं मैं जिस पर कौन सी वो प्रमुख है
है कौन सी समस्या, जिसके समाधान से समाज आज भी विमुख है 
देख हृदय मेरा सुन्न रह गया,देखा जब मैंने उस समस्या को
जनाब हिल गए कदम मेरे, मैं भूल ना पाया उस दृश्य को
देखा मैंने हर गली में, फैला प्रेम का बुखार है
और हर दूसरा बन्दा, बना घूम रहा शिकार है
मिले जनाब मुझे, लोग भांति भांति प्रकार के
ग्रसित थे अधिकांशतः, सभी जन इसी विकार से
हर दूसरे घर में दिखा, मुझे प्यार का आशिक
बिगड़ चुकी थी अब तक, जिसकी हालत मानसिक
और जिनकी हालत सुधरी थी, वो भी जनाब कमाल दिखे
या यूं कहूं मैं की, मानवता के लिए मुझे वो सवाल दिखे
सोशल मीडिया पर भी, दिखा निरंतर मुझे यही हाल
जिसने कर रखा था भ्रष्ट बुद्धी को, बच्चे भी  इससे थे बेहाल
जनाब  मस्तिष्क को तो मेरे, तब लगा झटका
जब वो कक्षा छठवीं का बच्चा, देखा मैंने राह से भटका
कहता है मेरा हृदय ही जानता है, मुझ पर क्या गुजरी
जब देकर धोखा वो बेहया, मेरे ही गली से गुजरी
कहता है मैं ही जानता हूं, कैसे मैंने अपना दर्द छुपाया है
सुनकर गाना मेरा इंतकाम देखेगी, जैसे तैसे मैंने खुद को समझाया है
मैंने कहा बेटा,पढ़ाई से ले रखा है क्या अवकाश
बोला क्या करते पढ़कर, अब तक तो वहीं बेवफ़ा थी खास
पढ़े-लिखे को नौकरी नहीं मिलती ,छोकरी मिलेगी कैसे
हम तो भैया  बिना पढ़ें लिखे ही, बहुत अच्छे हैं ऐसे
फिर मेरे सामने से निकले, बनठन करएक डिग्रीधारक
मैंने पूंछा जनाब, क्या तुम भी हो इस बीमारी के प्रचारक
वो बोले मियां इश्क कौन करता है,और जो कर भी ले तो निभाता है कौन
सुनकर उन जनाब के विचार, मेरे शब्द भी हो गए थे यकायक मौन
वो बोले हम तो मियां बस कुछ आंनद और समय बिताने को, खेल लेते है ये खेल
वो तो बस मेरा खिलौना है जनाब, वरना उसका और हमारा क्या मेल
नजर घुमाओ मियां,यहां एक छोड़ो दूसरी मिलती है
आंनद की इस बगिया में, हर दिन नयी कली खिलती है
खिलौनों से मियां इस जमाने में,कौन रिश्ता निभाता है
वो तो बस स्टेटस बढ़ाने के लिए, दोस्तों को दिखाया जाता हैं
फिर कुछ दूर चलकर मिले जनाब, एक महाशय पीएचडी वाले
हमने उनसे पूछने को हुए ही,वो बोले हम खा चुके ये निवाले
हम दिल से सच्चे थे इसलिए,जज़्बात हमारे मारे गए
ना बन पाए कामीने,वजह यही थी कि इश्क में हम हारे गए
अब हम, जीवन और भविष्य के प्रति गतिशील है
और लगा हृदय को कुण्डी, मस्तिष्क से विचारशील है
हर ओर देखा मैंने, दिखा बस मुझे छद्म प्रेम का निवास
सच्चा था कोई,तो कुछ ने बना रखा था बस टाइमपास
सच्चा रिश्ता प्रेम का, देखा मैंने आज कैसे कलंकित हुआ
प्रेम के नाम पर,भावनाओं को छलने का रिवाज आज प्रचलित हुआ
वास्तविक प्रेम का, किसी को भी आभास नहीं
कुंठित है समाज के विचार,कितने ये अहसास नहीं
सोचा मैंने तभी,इससे विकट समस्या समाज में व्यापत नहीं
सब भूल लिखने को, लगा मुझे विषय पर्याप्त हैं यही

_जागृति@***शर्मा..."अजनबी" #छद्म प्रेम
हृदय था मेरा जब बेचैन, मस्तिष्क डूबा चिंतन में
घुट रहा दम मेरा, कुरीतियों के इस सामाजिक क्रंदन में
अहिंसा का था पुजारी, लड़ सकता नहीं हथियार से
फिर सोचा तनिक मैंने ,और उठाई कलम बड़े प्यार से
कलम तो मैंने पकड़ ली,फिर हृदय में आया ये ख्याल
क्या लिखूं और लिखूं कैसे, मस्तिष्क में थे ढेरों सवाल
हो क्या विषय मेरा,जिस पर करूं मैं नित लेखन
बस यही विचार से चल दिया मैं चौराह पर देखन
सोचा यूं तो पहेली बहुत है, पर लिखूं मैं जिस पर कौन सी वो प्रमुख है
है कौन सी समस्या, जिसके समाधान से समाज आज भी विमुख है 
देख हृदय मेरा सुन्न रह गया,देखा जब मैंने उस समस्या को
जनाब हिल गए कदम मेरे, मैं भूल ना पाया उस दृश्य को
देखा मैंने हर गली में, फैला प्रेम का बुखार है
और हर दूसरा बन्दा, बना घूम रहा शिकार है
मिले जनाब मुझे, लोग भांति भांति प्रकार के
ग्रसित थे अधिकांशतः, सभी जन इसी विकार से
हर दूसरे घर में दिखा, मुझे प्यार का आशिक
बिगड़ चुकी थी अब तक, जिसकी हालत मानसिक
और जिनकी हालत सुधरी थी, वो भी जनाब कमाल दिखे
या यूं कहूं मैं की, मानवता के लिए मुझे वो सवाल दिखे
सोशल मीडिया पर भी, दिखा निरंतर मुझे यही हाल
जिसने कर रखा था भ्रष्ट बुद्धी को, बच्चे भी  इससे थे बेहाल
जनाब  मस्तिष्क को तो मेरे, तब लगा झटका
जब वो कक्षा छठवीं का बच्चा, देखा मैंने राह से भटका
कहता है मेरा हृदय ही जानता है, मुझ पर क्या गुजरी
जब देकर धोखा वो बेहया, मेरे ही गली से गुजरी
कहता है मैं ही जानता हूं, कैसे मैंने अपना दर्द छुपाया है
सुनकर गाना मेरा इंतकाम देखेगी, जैसे तैसे मैंने खुद को समझाया है
मैंने कहा बेटा,पढ़ाई से ले रखा है क्या अवकाश
बोला क्या करते पढ़कर, अब तक तो वहीं बेवफ़ा थी खास
पढ़े-लिखे को नौकरी नहीं मिलती ,छोकरी मिलेगी कैसे
हम तो भैया  बिना पढ़ें लिखे ही, बहुत अच्छे हैं ऐसे
फिर मेरे सामने से निकले, बनठन करएक डिग्रीधारक
मैंने पूंछा जनाब, क्या तुम भी हो इस बीमारी के प्रचारक
वो बोले मियां इश्क कौन करता है,और जो कर भी ले तो निभाता है कौन
सुनकर उन जनाब के विचार, मेरे शब्द भी हो गए थे यकायक मौन
वो बोले हम तो मियां बस कुछ आंनद और समय बिताने को, खेल लेते है ये खेल
वो तो बस मेरा खिलौना है जनाब, वरना उसका और हमारा क्या मेल
नजर घुमाओ मियां,यहां एक छोड़ो दूसरी मिलती है
आंनद की इस बगिया में, हर दिन नयी कली खिलती है
खिलौनों से मियां इस जमाने में,कौन रिश्ता निभाता है
वो तो बस स्टेटस बढ़ाने के लिए, दोस्तों को दिखाया जाता हैं
फिर कुछ दूर चलकर मिले जनाब, एक महाशय पीएचडी वाले
हमने उनसे पूछने को हुए ही,वो बोले हम खा चुके ये निवाले
हम दिल से सच्चे थे इसलिए,जज़्बात हमारे मारे गए
ना बन पाए कामीने,वजह यही थी कि इश्क में हम हारे गए
अब हम, जीवन और भविष्य के प्रति गतिशील है
और लगा हृदय को कुण्डी, मस्तिष्क से विचारशील है
हर ओर देखा मैंने, दिखा बस मुझे छद्म प्रेम का निवास
सच्चा था कोई,तो कुछ ने बना रखा था बस टाइमपास
सच्चा रिश्ता प्रेम का, देखा मैंने आज कैसे कलंकित हुआ
प्रेम के नाम पर,भावनाओं को छलने का रिवाज आज प्रचलित हुआ
वास्तविक प्रेम का, किसी को भी आभास नहीं
कुंठित है समाज के विचार,कितने ये अहसास नहीं
सोचा मैंने तभी,इससे विकट समस्या समाज में व्यापत नहीं
सब भूल लिखने को, लगा मुझे विषय पर्याप्त हैं यही

_जागृति@***शर्मा..."अजनबी" #छद्म प्रेम