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दूर दराज का दृश्य देखना चाह रहे थे , मजबूर थे,धुँध

दूर दराज का दृश्य देखना चाह रहे थे ,
मजबूर थे,धुँध चीरना बस में ना था ।
लगे कोसने आधूनिक जीवन शैली को,
दृश्य बदलना चाह रहे थे,मन बेबस था।
चौहारे ,चौपालों पर हुई भाषणबाजी, 
नारे खूब लगे ,जहाँ पर भारी रश था।
सुविचारों  से दीवारें भी पुती हुई थी, 
अखब़ारों में यही मामला ठस्समठस था।
किन्तु मेहनत,निष्ठा ने तब हार मान ली,
जब प्रयास परिणाम पूर्णतःजस का तस था ।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj
  #Dhund यह धुंध, हवा प्रदूषण

#Dhund यह धुंध, हवा प्रदूषण #कविता

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