या मेरे मौला! हैवानों की ये बस्ती मिट जाती तो अच्छा था! आबरू लुटने के पहले मेरी हस्ती मिट जाती तो अच्छा था! हर उम्र में दामन तार तो न होता तू भी शर्मसार तो न होता! पैदा ना होते गर हम तो अपनी देंहों का व्यापार तो न होता! किस्से लुटी आबरू के सर-ए-आम तो न होते, जिस ठौर लुटती इज़्ज़त वहाँ राम तो न होते! हम पर, लिबाज़ पर हमारे उंगली तो न उठती, यूँ हैवानों की नज़रें हमारे जिस्म पर न रूकती! यूँ ज़िन्दगी न मेरी मौत को गले लगाती, मैं तेरी दुनियां में न होकर दागदार आती! मैं ना होती मैं तो ये शिकायतें भी ना होतीं, मेरे जिस्म के कतरों पे सियासतें भी न होतीं! -स्वरांजलि 'सावन' #Ashifa#Nirbhaya#Damini#Divya #FeelThePain #AskForJustice