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"होश आया तो मुकद्दर किताब बन गयीं, धर्म और कर्म का

"होश आया तो मुकद्दर किताब बन गयीं,
धर्म और कर्म का सब हिसाब बन गयीं।
उलझनों से निकलने का अरमान बन गयीं,
जो चुकाना न था वो एहसान बन गयीं।
परवाह मेरी पर शान्त वो इंसान बन गयीं।
मंजिलों  की हर चाहत लाजवाब बन गयीं,
हां किताब ही बस मेरी पहचान बन गयीं।"

©Vibha Sharma
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