Nojoto: Largest Storytelling Platform

|| श्री हरि: || 64 - छाक आयी 'दादा, दादा, छाक आ ग

|| श्री हरि: ||
64 - छाक आयी

'दादा, दादा, छाक आ गयी!' श्यामसुंदर प्रसन्नता से नाच उठा है। पर्वत की ऊंची चोटी पर यह यही देखने चढा था कि छाक आ रही है या नहीं। भूख इससे दो क्षण भी सही नहीं जाती और अब इसमें छाक लाने वालियों का क्या दोष है कि उन्हें देर होती है। बेचारियों को नित्य वन-वन भटकना पडता है। ये बालक बिना पता-ठिकाना दिये कभी एक ओर तो कभी दूसरी ओर बछड़े हांक लाते हैं।

'सुबल। तोक। भद्र। अरे छाक आ गयी। दोड़ आओ। दोड़ आओ सब।' श्रीकृष्ण कूदता-उछलता उतर रहा है । एक प्रपात के पास बैठे अपने बड़े भाई के पास दौडा आ रहा है।

'दादा, छाक आ गयी।' मोहन वर्षा से धुली शिला को आसन बनाकर बैठ गया है दाऊ के पास, किंतु यह क्या ऐसे बैठ सकता है? दो-दो क्षण पर खडा होता है, उचक-उचककर देखता है - 'इतनी देर में भी सब नहीं आयी?'
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

|| श्री हरि: || 64 - छाक आयी 'दादा, दादा, छाक आ गयी!' श्यामसुंदर प्रसन्नता से नाच उठा है। पर्वत की ऊंची चोटी पर यह यही देखने चढा था कि छाक आ रही है या नहीं। भूख इससे दो क्षण भी सही नहीं जाती और अब इसमें छाक लाने वालियों का क्या दोष है कि उन्हें देर होती है। बेचारियों को नित्य वन-वन भटकना पडता है। ये बालक बिना पता-ठिकाना दिये कभी एक ओर तो कभी दूसरी ओर बछड़े हांक लाते हैं। 'सुबल। तोक। भद्र। अरे छाक आ गयी। दोड़ आओ। दोड़ आओ सब।' श्रीकृष्ण कूदता-उछलता उतर रहा है । एक प्रपात के पास बैठे अपने बड़े भाई के पास दौडा आ रहा है। 'दादा, छाक आ गयी।' मोहन वर्षा से धुली शिला को आसन बनाकर बैठ गया है दाऊ के पास, किंतु यह क्या ऐसे बैठ सकता है? दो-दो क्षण पर खडा होता है, उचक-उचककर देखता है - 'इतनी देर में भी सब नहीं आयी?' #Books

Views