है ख़ामोशी अब तेरे मेरे बीच मे हुआ तो बहुत कुछ है अपनी दोस्ती की तान-खिंच मे। की अब ज़र्रा-ज़र्रा नफरत करता है तुझ से ऐ "सुकून" पर ना जाने क्यों तेरे वापिस पलट कर आने की चाह रखता है "सुकून" पर में अब पथर हु ना पिघल पाऊंगा अब जो भी है ज़हर के निवाले को तरह निगल जाऊंगा। कि अब तुझको ओर मुझको अब साथ ही तड़पाउंगा प्रियांशु पारस