इक रहस्य जो विस्मित आज पनाह में समेटे मौन रात लहू से बहते कभी शब्दों पे आंसू से छलक पड़ते कभी पन्नो पे बड़ा विचित्र गुथी ये अंधकार में पलते अनजान परिंदे जिज्ञासा की लहर उफना चीर रही अन्तर्मन् की दिवार् किसकी गरज सुलझाए कौन गदर में लिपटे सरस पी जाए कौन बेशक विरह की चाशनी में डुबोया गया मर्म वो चीखे कहती दफन है हजारों लाशें भावों के अब आशा की गोद सूनी सूनी लगती निराश थकी निगाह में मौजूद नाकाम प्रयत्न क्या जाने अब किस पहर किस डगर दिखा चलें वो सत्य दर्पण इक रहस्य जो विस्मित आज पनाह में समेटे मौन रात। #kamil_kavi #nightpoetry #yqdidi #yqbaba #kunu