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हाथ आ कर लगा गया कोई मेरा छप्पर उठा गया कोई लग

हाथ आ कर लगा गया कोई 
मेरा छप्पर उठा गया कोई 

लग गया इक मशीन में मैं भी 
शहर में ले के आ गया कोई 

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी 
इश्तिहार इक लगा गया कोई 

ये सदी धूप को तरसती है 
जैसे सूरज को खा गया कोई 

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी 
बेच के अपना खा गया कोई 

अब वो अरमान हैं न वो सपने 
सब कबूतर उड़ा गया कोई 

वो गए जब से ऐसा लगता है 
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई 

मेरा बचपन भी साथ ले आया 
गाँव से जब भी आ गया कोई 

 waah jindagi tu bhi badi haseen hai
हाथ आ कर लगा गया कोई 
मेरा छप्पर उठा गया कोई 

लग गया इक मशीन में मैं भी 
शहर में ले के आ गया कोई 

मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी 
इश्तिहार इक लगा गया कोई 

ये सदी धूप को तरसती है 
जैसे सूरज को खा गया कोई 

ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी 
बेच के अपना खा गया कोई 

अब वो अरमान हैं न वो सपने 
सब कबूतर उड़ा गया कोई 

वो गए जब से ऐसा लगता है 
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई 

मेरा बचपन भी साथ ले आया 
गाँव से जब भी आ गया कोई 

 waah jindagi tu bhi badi haseen hai
arihantjain4917

Arihant Jain

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