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बहुत थक गई हूँ मैं, थोड़ा आराम कर लूँ, इनायत -ए-ख

बहुत थक गई हूँ मैं, थोड़ा आराम कर लूँ, 
इनायत -ए-खुदा हो तो सुबह को शाम कर लूँ ।

बेज़ार लगती हैं जिंदगी अब यारों के बिना, 
बज़्म-ए-याराँ मिले तो बातें उनसे आम कर लूँ ।

समझौतों मे ही बीत गया है बचपन, 
मशिय्यत-ए-दिल है कि ज़िद अब तमाम कर लूँ ।

हिकायत -ए-मुसीन अब हाफिज़ा हो गई, 
बेदार-ए-शक्सियत ज़रा साझा -ए-अवाम कर लूँ ।

वक़्त की किल्लत जो चैन से रोटी ही खा सकूँ, 
महव-ए-दुआ इक निवाला माँ के हाथ चूम कर लूँ ।


 Ghazal,  Kyon na aisa karu...

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बहुत थक गई हूँ मैं, थोड़ा आराम कर लूँ, 
इनायत -ए-खुदा हो तो सुबह को शाम कर लूँ ।

बेज़ार लगती हैं जिंदगी अब यारों के बिना, 
बज़्म-ए-याराँ मिले तो बातें उनसे आम कर लूँ ।

समझौतों मे ही बीत गया है बचपन, 
मशिय्यत-ए-दिल है कि ज़िद अब तमाम कर लूँ ।

हिकायत -ए-मुसीन अब हाफिज़ा हो गई, 
बेदार-ए-शक्सियत ज़रा साझा -ए-अवाम कर लूँ ।

वक़्त की किल्लत जो चैन से रोटी ही खा सकूँ, 
महव-ए-दुआ इक निवाला माँ के हाथ चूम कर लूँ ।


 Ghazal,  Kyon na aisa karu...

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