कुण्डलिय छंद है किस्मत का खेल सब,रंक बने भूपाल। सोता फिर वो चेन से,छोड़ सभी जंजाल।। छोड़ सभी जंजाल,कितने राम को भजते। कर्म हीन भी यहां, थोथे चना से बजते।। कह बादल कवि राय,भाग्य से सब कुछ रत है। हाथों में है कर्म, भोग बिलास किस्मत है।। है किस्मत का खेल सब,रंक बने भूपाल। सोता फिर वो चेन से,छोड़ सभी जंजाल।। छोड़ सभी जंजाल,कितने राम को भजते। कर्म हीन भी यहां, थोथे चना से बजते।। कह बादल कवि राय,भाग्य से सब कुछ रत है। हाथों में है कर्म, भोग बिलास किस्मत है।।