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कटी टहनियां बारी बारी सूख गया वट वृक्ष इस उम्मीद म

कटी टहनियां बारी बारी
सूख गया वट वृक्ष
इस उम्मीद में छोड़ा उच्छृंखल ने
बनेगा स्वयं विशाल दरख़्त।

मा के खाने पूछने पर
जो कभी झल्लाता था
बीवी के पूछने पर
उसे प्यार बतलाता है।

कहा मा ने
बेटा अलग घर मत बना
सीना तान कहा उसने
घर कहां?
मैं तो महल बना रहा।

काश उसे समझ होती
ईंट, बालू, सीमेंट से
महल नहीं बना करते
जब रिश्तों में प्यार नहीं
वो महल नहीं,
ताजमहल बन जाता है।
कब्र देखने सारा शहर
फिर घूमने आता है।

जड़ से कट भला कब तक
कौन स्वयं सम्हलता है?
बाहरी सहारे से भला!
क्या बेल वृक्ष बन सकता है?

गिरा धरती पर,आया होश
तब तक हो गया था बहुत विलंब
टहनी सूखी, वृक्ष हुआ भस्म।
हे भाई! ऐसा दुःखद अंत! #poem #familyfirst #unity
कटी टहनियां बारी बारी
सूख गया वट वृक्ष
इस उम्मीद में छोड़ा उच्छृंखल ने
बनेगा स्वयं विशाल दरख़्त।

मा के खाने पूछने पर
जो कभी झल्लाता था
बीवी के पूछने पर
उसे प्यार बतलाता है।

कहा मा ने
बेटा अलग घर मत बना
सीना तान कहा उसने
घर कहां?
मैं तो महल बना रहा।

काश उसे समझ होती
ईंट, बालू, सीमेंट से
महल नहीं बना करते
जब रिश्तों में प्यार नहीं
वो महल नहीं,
ताजमहल बन जाता है।
कब्र देखने सारा शहर
फिर घूमने आता है।

जड़ से कट भला कब तक
कौन स्वयं सम्हलता है?
बाहरी सहारे से भला!
क्या बेल वृक्ष बन सकता है?

गिरा धरती पर,आया होश
तब तक हो गया था बहुत विलंब
टहनी सूखी, वृक्ष हुआ भस्म।
हे भाई! ऐसा दुःखद अंत! #poem #familyfirst #unity