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हम जब भी अपने प्रिय के विषय में चिंतन या विचार

हम  जब भी अपने प्रिय के  विषय में चिंतन  या  विचारमग्न  होते है,
अपने  प्रिय के  अतिरिक्त  प्रत्येक  वस्तु हमें  अप्रिय  लगने लगती है
प्रश्न  है इस  प्रेम के  गुढ  रहस्य को  क्या कभी कोई  जान पाएगा ?
परंतु  यह  प्रश्न  अनभिज्ञ  सा  पथभ्रष्ट  एवं  अकारण  संदेहास्पद है
अपितु प्रेम तो ब्रम्हांड एवं हमारी मातृभूमि धरा पर सर्वत्र दृश्यमान है 
प्रेम  नैसर्गिक  एवं  अलौकिक  जीवन  रहस्य  का  श्रेष्ठतम  सार  है
इसलिए  प्रेम को  या  तो  राधेकृष्ण में  देख  आत्मसात  हो तर  जा
या  श्री कृष्ण के  आध्यात्म प्रेम में रत साध्वी मीरा  बाई में रत होजा

©अदनासा-
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