पता नहीं कितना कुछ अपने अंदर समेट लेते है ये लफ्ज़ खामोशियाँ की तरह इन के ज्यादा नख़रे नही होते गरूर तो अक्सर ख़ामोशियो करती है लफ्ज़ तो हमेशा बिख़रने तो तत्पर रहते है