धरती हिली थी, या हिला मेरा आत्मबल, घर मे बैठूं या बाहर भागूं, कशमकश में गुजर गया वो पल, मुख से निकला ना कोई बोल मेरा, शून्य हो गया डर से गोल चेहरा, आस में था आएंगे दिन कोई नवल, प्रकृति के ख़ौफ़,से पड़ गया शरीर धवल। कितना पाया, कितना खोया, लिपट प्रकृति के में खूब रोया, मिट रहे शहर,हो रहे मौत के दंगल, घर मे कैद, आज मैं फिर ढूंढ़ता जंगल। #life #challange #covid19 #india #chetanyajagarwad #time