संभावना जगदीश सहकारिता की पहल शीर्षक से लेखक अपने आलेख के जरिए कैप्टन का विक्रम सिंह के ग्राम अर्थव्यवस्था आधारित जन सहकारिता के पुनर्जीवन का जो मंत्र दिया है अब काबिले गौर है क्योंकि खेती किसान हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है भले ही किसी क्षेत्र के हिस्सेदारी जीडीपी में मात्र 16% के आसपास है लेकिन इस क्षेत्र में 40% लोग की भागीदारी है यह संख्या कोविड-19 गई थी इस बढ़ी हुई भागीदारी को हम प्रवचन बेरोजगार मान सकते हैं उन सब में यह भाव भरना अति आवश्यक है कि खेती किसानी कभी कोई घाटे का सौदा नहीं है बस जरूरत है बाजार की मांग और पर्यावरण अनुकूल तौर-तरीके अपनाने की खेती किसानी को लेकर राजनीति भी खूब होती है कि वोट बैंक के बड़े हिस्से का जुड़ाव इससे है ध्यान देने वाली बात है कि इसमें ज्यादा छोटे और सीमित किसान है की मंडी बड़े किसानों और आढ़तियों का शिकंजा है ऐसे में जब उन्होंने अपनी इस काल बचाने की बात होती है शोषण के शिकार होते हैं अगर उनके अपने पंचायत के गांव में किसी भंडार केंद्र होगा तब मन चाहे वक्त पर अपनी उपज बचा सकेंगे इसी तरह में किसानों को बढ़ती आहट के पास नहीं जाना होगा बल्कि अधिक किसानों के दरवाजे पर दस्तक देंगे प्रत्येक पंचायत में कृषि उपज भंडार तंत्र विकसित करने का यह सही वक्त है बिहार जैसे कुछ राज्यों में पैक संस्थाएं पुनर्जीवन हुई है मगर आधारभूत संरचना और जागरूकता के अभाव के कारण मजबूत समय में किसानों को इन में यथा उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है सहकारिता के जरिए किसानों की आय बढ़ाने में बाधा इन अवरोधों को हटाना जाना चाहिए ©Ek villain #कृषि उपज भंडार की हो व्यवस्था #proposeday