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कोई पंछी जिस पर लड़खड़ाया यूं। उसने कहा मुझसे -पं


कोई पंछी जिस पर लड़खड़ाया यूं।
उसने कहा मुझसे -पंछी ने ऐसा कहा क्यूं।
मैंने कहा भई हौंसला रख पंछी से टकरा लेना ।
तुझे और क्या चाहिए आखिर क्यों नहीं आगे बढ़ना।

वो पंछी कैसे पहुंचा ,
मुझे उसकी नींव गिरानी है ।
हर कदम उसका साथ क्यों दूं मैं,
मुझे तो उससे दुश्मनी निभानी है।

ऐसे विषैले बीज से मानव -दानव बन चला ।
मानव रुपी पौध में इंसानियत को भेद चला ।
आखिर उसने मुझे क्यों बोला, इसका कोई तो चक्कर है ।
इसी कड़ी में अंत तक भंवरा घनचक्कर है।

©Jitendra kumar sarkar
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