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आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की ग

आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था । हवा चल रही थी और आजादी का खुमार वातावरण में था । कमरे के बालकनी में एक सफेद कबूतर 🕊️ मेरे रखे गेहूं के दाने को बड़ा ही निडर होकर अपने गले मे भरे जा रहा था..। एक शरारत सूझी... उस कबूतर पर मैंने नील की डिब्बी से कुछ बूंदे छिड़क दिए... । उसकी सफेदी दागदार हो गयी । अब मेरे लिए पहचान पाना आसान हो गया कि ये वही कबूतर है जिसे मैं रोज दाना देता हूँ और जो मुझसे अब ब
आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था । हवा चल रही थी और आजादी का खुमार वातावरण में था । कमरे के बालकनी में एक सफेद कबूतर 🕊️ मेरे रखे गेहूं के दाने को बड़ा ही निडर होकर अपने गले मे भरे जा रहा था..। एक शरारत सूझी... उस कबूतर पर मैंने नील की डिब्बी से कुछ बूंदे छिड़क दिए... । उसकी सफेदी दागदार हो गयी । अब मेरे लिए पहचान पाना आसान हो गया कि ये वही कबूतर है जिसे मैं रोज दाना देता हूँ और जो मुझसे अब ब