वृन्दावन धाम अपार: श्रापित सा था अपना जीवन, कुछ भी मिले, अधूरा ही मन, भौतिक सुख की चाह में भटका, ढूंढ रहा था धन, बल, साधन, जब अपने सब बैरी होकर, काट रहे थे अपनी जड़ को, पत्ते तोड़, झटक बौरों को, तना उखाड़, ले गए घर को, संघर्षों में साथ थे जिनके, निज खुशियों में पृथक हो गए, दुःख ने ज्यों ही पल्ला खींचा, सब ओझल! ना दिए दिखाई। एसो यह संसार है भाई.....।। मौत से बातें करते, जाने, मैंने कितनी रात बिताई, कठिन दौर! दुविधा का घेरा, विषम वेदना, तोड़ ना पाई, संघर्षों में साथ रहे हो, ’केवल तुम’ चन्दन माथे से, स्पर्श तुम्हारा, स्नेह तुम्हारा, केवल याद तुम्हारी आई, डोल गई मृत्यु की राज्ञी, खाली हाथ लौटकर भागी, टूटी तंद्रा, जागी अंखियाँ, भाग तिहारे द्वारे आई। तुम ही अपनो कृष्ण कन्हाई.....🙏 ©Tara Chandra #VrindavanDiaries