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मेरा तो बस एक समंदर... कभी-कभी मुझको एक



मेरा तो बस एक समंदर...

कभी-कभी    मुझको    एक    बात  सता   जाती है 
नदी है फिर भी क्या जिंदा उसकी प्यास रह जाती है 
क्या     उसकी    भी    कोई    मजबूरी   रहती होगी 
तभी    मीठी    सी नदी  खारे समंदर में मिलती होगी 
वो खुद उतरी थी समंदर  और  उसकी   गहराईयों में 
या समंदर ने बाहें फैला छुपाया नदी को परछाईयों में 
क्या एक बड़ी सी लहर ने नदी को किनारे धकेला था 
या  भर लिया खुद को और खुद को पाया अकेला था 
नदी   को   भी समंदर  में    समाना   अच्छा  लगता है 
या बादल ओढ़ धरा की गोद में बहना अच्छा लगता है 
क्या  तुम्हें नहीं  लगता तुम अपना अस्तित्व खोती हो 
मीठी  से  खारी हो जाने के बाद क्या तुम भी रोती हो 
हिमालय   से  बह  पहाड़ों  को चीर  निकल  जाती हो 
फिर समंदर के आगे बताओं क्यों फीकी पड़ जाती हो 
फिर   एक   दिन नदी  ने मुझको  एक बात समझा दी 
ज़ज्बात है मेरे और मुकद्दर  समंदर है  बात बतला दी 
वफा  मैं  कर  देती  हूं और बेवफाई समन्दर दे देता है 
मैं उसमें समाती हूं वो खुद में कई नदियां समा लेता है 
समन्दर  को  बेशक  हजारों नदियां पसंद हो जाती है 
मेरा तो बस एक समंदर, नदी तो सागर को ही पाती है 
Priyanka Singh✍️

©Priyanka Panwar
  #समन्दर