मन का दीप क्यूँ न इस बार नयी सोच से दीपावली मनाया जाए। हर बार जलाते हैं 'घी' के दीप , क्यूँ न इस बार 'मन'के दीप जलाया जाए। हर बार करते है अपने घर की सफाई, क्यूँ न इस बार अपने मन की गन्दंगी को निकाला जाए। हर बार खरीदते है अपने लिए कुछ नये कपड़े, क्यूँ न बार जरूरतमंद को कुछ दिलाया जाए। हर साल खाते है हम खुब मिठाई, क्यूँ न इस बार कुछ गरीबों का मुंह मिठा कराया जाए। बहुत जला लिए 'घी' के दीप,अब मन के दीप जलाया जाए। क्यूँ न इस दीपावली के अवसर पर क्रोध,अहंकार, भेदभाव व लालची पन को हटाया जाए। क्यूँ न इस बार नयी सोच से दीपावली मनाया जाए। #happy diwali# nayi soch# man ke deep # for you#