शहर से गाँव तक आती-जाती रही चिट्ठियां तुम किसी गैर से किसी गैर को लिखवाती रही चिट्ठियां मैं भी लिखता तुमको दिल की बात पर मुझसे तो सदा ही ख़फा रही चिट्ठियां अबके जाऊंगा तो भर लूंगा सबको बाहों में मैं गाँव के उस नीम के काँधे पर टँगी है मेरे बचपन की कुछ चिट्ठियां किसी के हाथ से छीन कर जो पढ़ लिया था मैंने बड़ी देर तलक फिर शरमाते रही चिट्ठियां एक रोज़ हाथ जो थाम लिया था मैंने घर,गली,मंदिर के गालों पर मुस्कुराती रही चिट्ठियां दिल के शहर में आंखों के डाकिये छत से छत तक आती-जाती रही चिट्ठियां बरसो से है इंतज़ार जिसका वो लौटा नही 'जल्द लौटूंगा मैं'बस आती रही चिट्ठियां जज्बातों की बेक़दरी से घुटता है दम मोबाईल के दौर में मरते जा रही चिट्ठियां #NojotoQuote