रक़ीब चाहा अगरचे तूने तो रुख़ ये तेरा उदास क्यों है तुझे मिली है तिरी मुहब्बत तो तुझको मेरी ही आस क्यों है कि याद उसकी नहीं है मन में, खली नहीं है कमी तो फिर क्यों तिरे जहन में तिरे लबों पर शराब का ये गिलास क्यों है तुम्हारी खातिर मैं सज संवर के आ गया हूं मगर मेरी जां तिरे बदन पे किसी सखी का दिया हुआ ये लिबास क्यों है शराब-ओ-महफ़िल भी तेरी बातों से हमने छोड़ी ए-जान-ए-जानां छुड़ा के सारे हुनर हमारे बता तू फ़िर भी उदास क्यों है तिरी मुहब्बत में हार करके मैं सबको उल्फ़त सिखा रहा हूं रक़ीब मुझसे कहे है हरपल तू इतना उल्फ़त शनास क्यों है कि जब सिकंदर जनेगी धरती तो एक पोरस भी होगा पैदा तिरा कबीला किसी सिकंदर के डर से इतना हिरास क्यों है ~Himanshu Kuniyal ©Rasik Sarkoti #philosophy #ghazal #Shayari #Love #MoonBehindTree