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सोंचता हूं कि अब किधर जाए, दर्द कागज़ पे ही उतर ज

सोंचता हूं कि अब किधर जाए, 
दर्द कागज़ पे ही उतर
जाए

मुझ में ठहरा सा इक समन्दर है 
आंख वालों को न नज़र आए #blaze
सोंचता हूं कि अब किधर जाए, 
दर्द कागज़ पे ही उतर
जाए

मुझ में ठहरा सा इक समन्दर है 
आंख वालों को न नज़र आए #blaze