उस अनजान रास्ते पर छोटा एक गांव आता था, मानों तपती दुपहरी में शीतल एक छांव आता था, उसी गांव से उसी रास्ते पर गले की घंटी बजाते दो बैल आते थे थोड़ी दूर चलो तो कुछ घरौंदे कुछ खपरैल आते थे उसी रास्ते पर वो बैल, वो खपरैल अब मिलते नहीं मुझसे शहर में कोई कली कोई पेड़ खिलते नहीं मुझसे रास्ते पर चलते हुए गांव के छूटने की भी अपनी एक टीस है सच है कि मंजिल पर पहुंचने की भी अपनी एक फीस है सदानन्द कुमार समस्तीपुर बिहार ©Sadanand Kumar #IFPstorytelling #hindipoetry #hindiwritting #story #storytelling #Travelstories #Memories #Trending #nojotonews Praveen Storyteller अर्श