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खोई - खोई रहती हूं रहती हूं सुबह और शाम जुबां से क

खोई - खोई रहती हूं
रहती हूं सुबह और शाम
जुबां से कुछ कह न पाऊं
कैसे लिखूं मैं उसका नाम...

सखियां इठलाती हैं
पूछती हैं जब उसका नाम
जुबां से कुछ कह न पाऊं
कैसे इशारों से समझाऊं मैं उसका नाम...

मन ही मन मुस्काती है
क्या लेती है तू उसका नाम
क्यों सखी तू घबराती है
बता दे कौन है तेरा राम.....

रोज मैं सजती संवरती हूं
सांवली सूरत पे मरती हूं
बंसी की धुन पे थिरकती हूं
दरश को वृंदावन जाती हूं
मैं उनके मन की राधा वो हैं मेरे तन मन के श्याम
क्या अब भी नहीं समझ पाई तुम उनका नाम.....

 #likhtihudilse likh nhi paaun mai unka naam#
खोई - खोई रहती हूं
रहती हूं सुबह और शाम
जुबां से कुछ कह न पाऊं
कैसे लिखूं मैं उसका नाम...

सखियां इठलाती हैं
पूछती हैं जब उसका नाम
जुबां से कुछ कह न पाऊं
कैसे इशारों से समझाऊं मैं उसका नाम...

मन ही मन मुस्काती है
क्या लेती है तू उसका नाम
क्यों सखी तू घबराती है
बता दे कौन है तेरा राम.....

रोज मैं सजती संवरती हूं
सांवली सूरत पे मरती हूं
बंसी की धुन पे थिरकती हूं
दरश को वृंदावन जाती हूं
मैं उनके मन की राधा वो हैं मेरे तन मन के श्याम
क्या अब भी नहीं समझ पाई तुम उनका नाम.....

 #likhtihudilse likh nhi paaun mai unka naam#