उन यादों की तल्खियां फ़िकी पढ़ने लगी थीं, जिन्हे हम ख़ुद को जला कर रोशन किया करते थे.. इंतजार की वो आखिरी चंद लम्हें, मोम की तरह पिघलने लगी थीं.. ज़िन्दगी की रौशनी छीनते देर ना लगी, लम्हें इंतजार के ख़त्म हुए भी तो कब.. एक बहाने के संग कि अब गुजार ले वो लम्हा भी, जो दर्द भी मीठा दें रहा है और उन लम्हों को रोशन भी कर रहा है.. #यादें_ज़िन्दगी