फूल फूलते आज चमन मैं, जिसको सींचा कुर्बानी नेॽ लहू दिया था किसने इसको ॽ किसने दिया हवा और पानीॽ किसने छाया बन सहलाया ॽ किसने कांटों से तड़पाया ॽ किसने छांटा इसके कद को ॽ किसने बांटा आज इसी को ॽ मज़हब की गाली देकर के, आज खड़ा रोता इसका तन, अपने कटते भागों पर, अरे मत काटो,अरे मत बांटो, मेरे लाल बिछुड़ जाएंगे, लहू गिराकर हमें संवारा, हम क्या उन्हें भूल पाएंगे ॽ गहरी थकन लड़ाई से जो सोए हैं चिर निद्रा में, जागते होते आज वही जो, तो क्या। मेरा हाल ये होता, न ही पाक अलग हो पाता, न तिब्बत का हाल ये होता, काबुल भी सीमान्तर होता , चीन भी अपनी हद में रहता, लेकिन ओछी राजनीति ने, बंटवारे का बीज उगाया, ईर्ष्या और और द्वेष में भरकर, भाई भाई का लहू बहाया, बंटवारे का दंश अभी तक, निकला नहीं शियाओं से, अलगाववाद, आतंकवाद और नफरत मिली दुआओं से, जो नफरत के व्यवसायी थे वो देश के पहरेदार बने, नारदान में बहने वाले कंगूरे की ईंट बने, राष्ट्र नमन करता है उसको जो एक सूत्र में बांध सके पिता वही होता है काबिल जो आचरणों में ढाल सके। । वन्दे मातरम् चमन की दुर्दशा