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जब ओस की बूंदें रातों को छनकर कंबल से आती हैं फिर

जब ओस की बूंदें रातों को
छनकर कंबल से आती हैं
फिर सर्दी में फुटपाथों पे
ये सारी रात जगाती हैं

हमसे पूछो सर्दी में हाल
हाथ और पैरों को समेटे 
एक आस लिए बैठा हूं
निकलेगी फिर धूप सुबह
सूरज की राह को तकता हूं

हो गया हुं लाचार बहुत
ये मकां नहीं अब काम का
बची चंद सांसों के लिए
हर रोज जिंदगी से लड़ता हूं #povertyquotes
जब ओस की बूंदें रातों को
छनकर कंबल से आती हैं
फिर सर्दी में फुटपाथों पे
ये सारी रात जगाती हैं

हमसे पूछो सर्दी में हाल
हाथ और पैरों को समेटे 
एक आस लिए बैठा हूं
निकलेगी फिर धूप सुबह
सूरज की राह को तकता हूं

हो गया हुं लाचार बहुत
ये मकां नहीं अब काम का
बची चंद सांसों के लिए
हर रोज जिंदगी से लड़ता हूं #povertyquotes