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ग़ुस्ताख़ हूँ नज़र से,पर दिल से,ईमान लिखता हूँ फेर

ग़ुस्ताख़ हूँ नज़र से,पर दिल से,ईमान लिखता हूँ
फेरता हूँ 
लबों पर उँगलियाँ और ....nojota.. पर अपनी बात रखता हूँ ।

हैबानो कीं हैवानियत अब भी ज़िन्दा हैं
आज फिर एक बार इंसानियत शर्मिन्दा हैं
ख़ुद को मर्द कहते हैं लड़कियों पर तेज़ाब फेंककर
रूहँ काँप जाती हैं मेरी यहीं सब सोचकर,
कभी तो उनकी खिलखिलातीं हुई हँसीं को सुना होता 
कभी तो उनके सपनो से भरें मासूम निगाहो को टटोंला होता,
तब हीं जान पाते बों लड़की हैं कोई सामान नहीं
जिस पर तेज़ाब फेंक दिया बों यूँ तो कोई बेजान नहीं,

हैवानियत अब हर ज़गह बढ़ने लगीं हैं
शायद लड़कियाँ अब रास्ते पर चलने से डरने लगीं हैं

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ग़ुस्ताख़ हूँ नज़र से,पर दिल से,ईमान लिखता हूँ
फेरता हूँ 
लबों पर उँगलियाँ और ....nojota.. पर अपनी बात रखता हूँ ।

हैबानो कीं हैवानियत अब भी ज़िन्दा हैं
आज फिर एक बार इंसानियत शर्मिन्दा हैं
ख़ुद को मर्द कहते हैं लड़कियों पर तेज़ाब फेंककर
रूहँ काँप जाती हैं मेरी यहीं सब सोचकर,
कभी तो उनकी खिलखिलातीं हुई हँसीं को सुना होता 
कभी तो उनके सपनो से भरें मासूम निगाहो को टटोंला होता,
तब हीं जान पाते बों लड़की हैं कोई सामान नहीं
जिस पर तेज़ाब फेंक दिया बों यूँ तो कोई बेजान नहीं,

हैवानियत अब हर ज़गह बढ़ने लगीं हैं
शायद लड़कियाँ अब रास्ते पर चलने से डरने लगीं हैं

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