अपनी आज़ादी का कफ़न वो खुद सी रहे वो तोते अब अमरूदों पर जी रहे जगाते रहे हरवक्त उन्हें जो वो एक एक करके कुचल दिए गए कुछ जो बचे वो कहि और जा के बस गए मर गयी नदिया कट गए जंगल वो अब खोकले घरो में रहने लगे कभी बड़े कभी छोटे बक्से में वो दिमाग अपना गिरवी रखने लगे अंधियार उजाले में फर्क करना भूल गए जो उजियाले से ही डरने लगे चोरो चोरो में से जो चोरो को पहचानना भूल गए हर कोई कैद है हर किसी के पिंजेरेमे मालिक का गुण गाते हर रंग के तोते है अंधियारेमे चमक रहे थे जो जुगनू वो जुगनू ही माँर के खा गए वो देश पर मरने वाले सब देश को ही खा गए कल अगर हुई भी बहस सत्ता-विपक्ष के गलियारोमे मनोरंजन के लिए लड़ाई लगवा देंगे दो सफेद कपोतों में राही" वो तोते