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मेरी कलम और में। कुछ कहता हूं में, कुछ लिखती है क

मेरी कलम और में।

कुछ कहता हूं में,
कुछ लिखती है कलम,
बीत जाते है कई दिन ।
सुनसान पड़ी रहती है कलम,
लिखने का है चाव
सोचता हूं, कभी  कभी 
तालब से भी गहरे पड़ गए
क्या, इन काले शब्दों से भर जायेंगे ये घाव
मन ही मन यह सवाल आता है
लिखना शुरू करता हु,
तो मन में इक बवाल आता है
डरता नहीं में सत्ता के पहरेदारों से
चलता एक कदम नहीं हूं, में
 बिना अपनी कलम के सहारे से
जिंदगी भर का है साथ 
जब तक चलते रहेंगे मेरे हाथ,
भटकता है , मन स्थिर रहता है तन,
घूमती है कलम पाताल इहलोक और गगन
कुछ लिखती है खुद ,कुछ कहता है मन
बस इतना सा ही हैं सफर ,एक हूं में
और एक है, मेरी कलम!

                         सुभाष सी. शर्मा

©Subhash.C.sharma
  मेरी कलम और में

मेरी कलम और में #कविता

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